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Electoral bonds: एक पॉजिटिव दृष्टिकोण के साथ जानिए क्यों है इस पर चर्चा! 7 रोचक तथ्य

हम देखेंगे कि Electoral bonds क्या है, इसे क्यों लाया गया, इसके क्या फायदे हैं, और ये चर्चा में क्यों हैं. साथ ही, हम राजनीतिक दलों को मिले चंदे पर भी नजर डालेंगे.

 

Electoral bonds क्या है?

कल्पना कीजिए, आपके पास एक चेक होता है, लेकिन उस पर राशि लिखी नहीं होती, सिर्फ एक निश्चित रकम का वादा होता है. जिसे ये चेक दिया जाता है, वही उस रकम को भुना सकता है. इलेक्टोरल बॉन्ड कुछ इसी तरह का वचन पत्र है. यह एक खास किस्म का बैंक गारंटी होता है, जिसे भारतीय स्टेट बैंक (SBI) कुछ चुनिंदा सरकारी बैंकों के माध्यम से जारी करता है. इन बॉन्ड्स पर 1000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक की राशि का उल्लेख होता है, लेकिन यह राशि बॉन्ड पर लिखी नहीं होती.

Electoral bonds कौन खरीद सकता है?

कोई भी भारतीय नागरिक या विदेशी व्यक्ति या संस्था जैसे बड़ी बड़ी कंपनियां Reliance (रिलायंस), Tata (टाटा), Mahindra (महिंद्रा) और वगैरह वगैरह, जो भारत में Income tax (इनकम टैक्स) कानून के तहत रजिस्टर्ड है, Electoral bonds खरीद सकता है.  लेकिन, ये Electoral bonds नकद में नहीं खरीदे जा सकते. इन्हें सिर्फ Bank (बैंक) चेक या ड्राफ्ट के जरिए ही खरीदा जा सकता है.

 

Electoral bonds कैसे इस्तेमाल किया जाता है?

इसे खरीदने के बाद, इसे किसी भी राजनीतिक दल को, जो चुनाव आयोग के साथ रजिस्टर्ड है, दान दिया जा सकता है. दान प्राप्त करने वाली पार्टी को ये बॉन्ड निर्धारित सरकारी बैंकों में जमा करवाने होते हैं, मान लीजिये की किसी व्यक्ति या कंपनी ने SBI बैंक का बांड ख़रीदा और उसने किसी पार्ट को वो bond दिया है तो वो राजनीती पार्टी उसी Bank में जाकर अपना बांड को बंझा सकती है यानी की Cash में करवा सकती है ! Electoral bonds की वैधता सिर्फ 15 दिन की होती है, यानी इसे खरीदने के 15 दिन के अंदर ही किसी पार्टी को देना होता है.

 

Electoral bonds क्यों लाया गया?

पहले, राजनीतिक दलों को चंदा Cash में या फिर गुप्त तरीकों से दिया जाता था. इससे पारदर्शिता की कमी थी और यह पता लगाना मुश्किल था कि दान देने वाला कौन है और रकम कितनी है. Electoral bonds की शुरुआत का मकसद यही कमी दूर करना था.

क्या वाकई फायदा हुआ?

Electoral bonds के कुछ फायदे बताए जाते हैं:

Transparency (पारदर्शिता): चूंकि बॉन्ड बैंक के जरिए खरीदे जाते हैं, तो दान देने वाले की पहचान गुप्त रहती है, लेकिन यह पता चल जाता है कि कितना चंदा दिया गया.

Black Money (कम काला धन): Cash (कैश) चंदे को कम करने में मदद मिलती है.

Small Doner (छोटे दानदाताओं को प्रोत्साहन): छोटी रकम के Electoral bonds होने से ज्यादा लोगों को पार्टियों को सहयोग करने का मौका मिलता है.

 

लेकिन, क्या सबकुछ ठीक है?

Electoral bonds को लेकर कुछ आशंकाएं भी जताई जाती हैं:

गुप्त चंदा कायम: गुप्त चंदा देने वाला व्यक्ति किसी और को Electoral bonds खरीदने के लिए पैसे दे सकता है. इससे Transparency का उद्देश्य कमजोर होता है.

बड़े दलों को फायदा: बड़ी कंपनियां या उद्योगपति ज्यादा रकम के Electoral bonds खरीदकर राजनीतिक दलों को प्रभावित कर सकते हैं.

चुनाव आयोग की निगरानी कम: चुनाव आयोग को यह पता नहीं चल पाता कि असल में Electoral bonds खरीदने वाला कौन है.

 

चर्चा का विषय क्यों?

ये 2018 से चर्चा में हैं। इनका समर्थन करने वाले कहते हैं कि ये Cash डोनेशन कम करते हैं और Transparency लाते हैं। वहीं विरोधियों का मानना है कि दानदाता का नाम गुप्त रहने से भ्रष्टाचार बढ़ सकता है। साथ ही, बड़े दलों और धनवानों को ज्यादा फायदा होता है। चुनाव आयोग डेटा रखता है, लेकिन दानदाता का पता लगाने में सक्षम नहीं है। सुधार के लिए दानदाता का नाम सार्वजनिक करने और चुनाव आयोग को ज्यादा अधिकार देने की मांग उठ रही है। कुल मिलाकर, Electoral bonds एक जटिल विषय हैं, जिनमें सुधार की जरूरत है।

अभी चुनाव आयोग के पास सिर्फ 2018 से 2022 तक के इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े आंकड़े ही उपलब्ध हैं। 2023 और 2024 के लिए अभी तक कोई जानकारी नहीं दी गई है.

कुल मिलाकर राजनीतिक दलों को 9,188 करोड़ रुपये के Electoral bonds मिले।

 

BJP (भाजपा): 4,858 करोड़ रुपये (53%)

Congress (INC): 2,307 करोड़ रुपये (25%)

Other Political Part: (अन्नाद्रमुक, TRS, BSP, TMC, NCP, Shivsena, DAP etc.) – लगभग 2,033 करोड़ रुपये (22%)

 

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